Monday, February 11, 2013

मुहब्बत का जनाज़ा

कौन कहता है मुहब्बत का जनाज़ा निकला 
बात इतनी सी है, अपना भी पराया निकला 

उम्र-ए-रफ़्ता को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे 
बज़्म-ए-तनहाई में हर दम वह ज़माना निकला 

खत लिखे लाख मगर लौट के आए सारे 
जो किसीने न पढा ऐसा रिसाला निकला 

आदमी कौन यहाँ, देव किसे कहते हैं 
जिस को देखा वही पत्थर से तराशा निकला 

चाल हम ऐसी चले, मात हमारी तय थी 
जिस पर हमला किया वह सिर्फ 
प्यादा निकला 

थि खुमारी-ए-मुहब्बत तो लगा दिल गुलशन 
होश आया तो वही बाग ख़राबा निकला 

आज कल लोग, '
सफ़र ', भक्त हुए जाते हैं 
के सर-ए-कू-ए-ख़राबात शिवाला निकला




जनाज़ा मेरा उठ रहा था...

फिर भी तकलीफ थी उनको आने में...

ज़ालिम 
आई  भी तो पुछ रही थी ..

और कितनी देर लगेगी दफनाने में...

Wednesday, February 6, 2013

दानिश की दुनिया



डूबने की ज़िद

रंगे-दुनिया कितना गहरा हो गया
आदमी का रंग फीका हो गया

डूबने की ज़िद पे कश्ती आ गयी
बस यहीं मजबूर दरया हो गया

रात क्या होती है हमसे पूछिए
आप तो सोये, सवेरा हो गया

आज ख़ुद को बेचने निकले थे हम
आज ही बाज़ार मंदा हो गया

ग़म अँधेरे का नहीं दानिश मगर
वक़्त से पहले अँधेरा हो गया





कारीगर का पत्थर

पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है 
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है 

एक ज़रा सी कश्ती ने ललकारा है 
अब देखें क्या ढोंग समंदर करता है 

कान लगा कर मौसम की बातें सुनिए 
क़ुदरत का सब हाल उजागर करता है 

उसकी बातों में रस कैसे पैदा हो 
बात बहुत ही सोच समझ कर करता है 

जिसको देखो दानिश का दीवाना है 
क्या वो कोई जादू मंतर करता है

Sunday, February 3, 2013

आवारगी

अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कि कोई देखता न हो।

ये दिल, ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया, आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ, आवारगी।
कल शब मुझे बेशक्ल सी आवाज़ ने चौंका दिया
मैंने कहा तू कौन है उसने कहा आवारगी।
इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मेरे ग़म का सबब
सहरा की भीगी रेत पर मैंने लिखा आवारगी।
ये दर्द की तनहाइयाँ, ये दश्त का वीराँ सफ़र
हम लोग तो उकता गये अपनी सुना, आवारगी।
कल रात तनहा चाँद को देखा था मैंने ख़्वाब में
‘सफ़र’ मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी।


दश्त = रेगिस्तान
शब = रात
सबब = कारण