Wednesday, February 6, 2013

दानिश की दुनिया



डूबने की ज़िद

रंगे-दुनिया कितना गहरा हो गया
आदमी का रंग फीका हो गया

डूबने की ज़िद पे कश्ती आ गयी
बस यहीं मजबूर दरया हो गया

रात क्या होती है हमसे पूछिए
आप तो सोये, सवेरा हो गया

आज ख़ुद को बेचने निकले थे हम
आज ही बाज़ार मंदा हो गया

ग़म अँधेरे का नहीं दानिश मगर
वक़्त से पहले अँधेरा हो गया





कारीगर का पत्थर

पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है 
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है 

एक ज़रा सी कश्ती ने ललकारा है 
अब देखें क्या ढोंग समंदर करता है 

कान लगा कर मौसम की बातें सुनिए 
क़ुदरत का सब हाल उजागर करता है 

उसकी बातों में रस कैसे पैदा हो 
बात बहुत ही सोच समझ कर करता है 

जिसको देखो दानिश का दीवाना है 
क्या वो कोई जादू मंतर करता है

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