Friday, January 18, 2013

कबीर के दोहे


कंकड़ पत्थर जोड़ के मस्जिद लियो बनाए।
ता चढ मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदा॥

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

बुरा जो देखने मैं चला, बुरा न मिला कोए !
जो मन खोजा आपणा, मुझसे बुरा न कोए!!

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए,
माली सींचे सौ घडा, रुत आये तो फल होए!

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