भारतीय संस्कृति को भुला बैठे समाज में स्त्रियों पर बढ़ते अत्याचारों पर किसी कवी की सोच महाभारत में अपनो से ही दांव पर लग चुकी द्रौपदी को श्रीकृष्ण के बजाय स्वयं ही रक्षा के लिए तैयार होकर कौरवों से लढ़ ने के लिए कह जाती है।
सूनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आयंगे
छोडो मेहँदी खडक संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे |
कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आयेंगे |
कल तक केवल अँधा राजा,अब गूंगा बहरा भी है
होठ सील दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझायेंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे |
chalu hotey hi khatam ho gayi, abhi to maza aana chalu hua tha ki daaru khatam.
ReplyDeletena mandir na masjid , koi nyay dila na payga
har mod par naam sahayta ka leke, gidh tumhey kha jayga,
nyaya milega mrityuoprant, tab tak ghar basan sab bik jaynge,
Suno draupadi astra utha lo, ab govind na aaynge.
प्रस्तुत कविता के रचनाकार कौन है?
ReplyDeleteपुष्यमित्र उपाध्याय ने लिखी है
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