Sunday, January 27, 2013

अहिंसक है नपुंसक नहीं

अभी शहीदों की आत्माओं की शांति बाकी है,
अभी उजड़े सुहागों की क्रान्ति बाकी है,
अभी दुश्मन के लहू का पान बाकी है,
अभी तेरे नेस्तनाबूत होने की क्रान्ति बाकी है,
अभी लावारिस हुए मासूमों जवाब मांगेंगे,
अभी बूढ़े माँ-बाप खोया प्यार मांगेगे,
बहुत खेला क्रिकेट कहके अमन की आशा है,
अब खेलना है लहू से तेरे और नहीं दिलासा है,
सुन ले बेटा नापाक इसमें शक नहीं है,
अहिंसक तो हैं हम पर नपुंसक नहीं हैं…...!!!!!!

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