है सब नसीब की बातें खता किसी की नहीं
ये जिंदगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं।
तमाम जख्म जो अंदर तो चीखते हैं मगर
हमारे जिस्म से बाहर सदा किसी की नहीं।
वो होंठ सी के मेरे पूछती है चुप क्यों हो
किताबे-ज़ुर्म में ऐसी सज़ा किसी की नहीं।
बड़े-बड़े को उड़ा ले गई है तख्त केसाथ
चराग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।
'सफ़र सबकी दुआएं मिली बहुत लेकिन
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।
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