Sunday, November 3, 2013

मेरा नसीब

मिलना था इत्तेफाक, बिछड़ना नसीब था,
वो उतना ही दूर हो गया जितना करीब था।

मैं उसको देखने को तरसती ही रह गई,
जिस शख्स की हथेली में मेरा नसीब था।

बस्ती के सारे लोग ही आतिश परस्त थे,
घर जल रहा था जब की समंदर करीब था।

दफना दिया गया मुझे चांदी की कब्र में,
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का गरीब था।

"
अंजुम" मैं जीत कर भी यही सोचती रह गई,
जो हार कर गया बड़ा खुशनसीब था।


                                 अंजुम रहबर (Anjum Rehbar)


आतिश परस्त - आग पसंद करनेवाले

Tanha

Voh Bhi Meri Tarah Hi Shaher Mein Tanha Hoga 
Roshni Khatam Na Kar Aage Andhera Hoga 
Pyaas Jis Nehr Se Takrayi Vo Banjar Nikli 
Jisko Piche Kahi Chor Aaye Vo Dariya Hoga 
Ek Mehfil Mein Kayi Mehfilein Hoti Hain 
Shareek Jisko Bhi Pass Se Dekhoge Akela Hoga 
Mere Baare Mein Koi Raay To Hogi Uski
Usne Mujhko Bhi Kabhi Tor Ke Dekha Hoga  
                                                                   - Nida Fazli

Dard-E-Aashiq

Hothon Pe Mohabbat Ke Fasaane Nahi Aate 
Sahil Pe Samander Ke Khazane Nahi Aate 
Palkein Bhi Chamak Uth-ti Hain Sote Huye 
Humari Aankho Ko Abhi Khwab Chupane Nahi Aate 
Dil Ujadi Huyi Ek Saraay Ki Tarah Hai 
Ab Log Yahan Raat Bitane Nahi Aate 
Udne Do Parindo Ko Abhi Shokh Hawa Mein 
Fir Laut Ke Bachpan Ke Zamane Nahi Aate
Kya Soch Ke Aaye Ho Mohabbat KiGali Mein
Jab Naaz Haseeno Ke Uthane Nahi Aate 
Apne Bhi Gairon Ki Ada Seekh Gaye Hain 
Aate Hain Magar Dil Ko Dukhane Nahi Aate 
                                                                 - Bashir Badr

Thursday, October 24, 2013

"इस उड़ान पर अब शर्मिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
छूट गई रस्ते में जीने मरने की सारी कसमें
अपने -अपने हाल में ज़िंदा मैं भी हूँ और तू भी है…!!!"




"बदलने को तो इन आखोँ के मंज़र कम नहीं बदले ,
तुम्हारी याद के मौसम,हमारे ग़म नहीं बदले ,
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी,तब तो मानोगी ,
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले......."




                करवा चौथ
"चाँद को इतना तो मालूम है तू प्यासी है,
तू भी अब उस के निकलने का इंतजार ना कर ,
भूख गर जब्त से बाहर है तो कैसा रोज़ा ?
इन गवाहों की ज़रूरत पे मुझे प्यार ना कर ..."




बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पायी कभी मैं कह नहीं पाया||

Tuesday, July 23, 2013

Tujhe Kaun Karega Pyaar

Teri Payal Ki Jhankaar Arey Re Baba Na Baba
Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba

Tu Ghar Aangan Ki Izzar Thi Pehle Is Ghar Ki Zinat Thi
Tujhse Duniya Aabad Hui Tu Hi Pehle Barbaad Hui
Bikti Hai Khule Baazar Arey Re Baba Na Baba

Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba

Kahin Maa Hai Kahin Biwi Bankar Beti Hai Behen Hai Tu Ghar Ghar
Kadmo Me Tere Jannat Aayi Phir Bhi Na Tujhe Gerat Aayi
Yeh Roop Tera Singaar Arey Re Baba Na Baba

Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba

Kuch Apne Jawaano Ki Ghaflat Kar Baithe Jawaani Me Ulfat
Khushiyo Ka Mahal Aabad Kiya Lekin Khud Ko Barbaad Kiya
Aur Kitne Mile Beemar Arey Re Baba Na Baba

Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba

Achche Achche Gir Jaate Hai Bas Ek Teri Angdaai Me
Ek Lamhe Me Das Leti Hai Naagan Bankar Phurwaai Me
Tera Kaun Banega Yaar Arey Re Baba Na Baba

Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba

Tu Ghar Me Dulhan Bankar Aayi Pehle To Bahut Kuch Sharmaai
Ab Ghoom Rahi Hai Sadko Par Koi Sang Chale Picture Picture
Tera Har Din Hai Itwaar Arey Re Baba Na Baba

Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba

Naino Ki Chalaa Kar Madhushala Raahi Ko Bhi Pagal Kar Daala
Tasbih Bhi Giri Mullah Ki Mere Pandi Ki Mere Chuti Maala
Tere Ishq Ka Yeh Vyapaar Arey Re Baba Na Baba

Tujhe Kaun Karega Pyaar Arey Re Baba Na Baba


                                             - Rahi Bastavi

Friday, June 14, 2013

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है

अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
(बिस्मिल आजिमाबादी)

Sunday, June 2, 2013

निगाह

निगाह उठे तो सुबह हो झुके तो शाम हो जाए
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो कत्लेआम हो जाए
जरूरत ही नहीं तुझको मेरे बांहों में आने की
तू ख्वाबों में ही आ जाए तो अपना काम हो जाए

Saturday, June 1, 2013

Aag Ka Dariya

Masoom Mohabbat Ka Bus Itna Fasana Hai,

Kagaz Ki Haveli Hai Barish Ka Zamana Hai.

Kya Shart-E-Mahobbat He Kya Shart-E-Zamana Hai,

Awaz Bhi Zakhmi Hai Or Geet Bhi Gana Hai.

Us Par Utarne Ki Ummeed Kam Hai,

Kashti Bhi Poorani Hai, Tufan Ko Bhi Aana Hai.

Samjhe Ya Na Samjhe Wo Andaz Mohabbat K,

Ek Shaksh Ko Ankhon Se Hal-E-Dil Sunana Hai.

Bholi Si 'Ana' Phir Koi Ishq Ki Zad Par Hai,

Fir Aag Ka Dariya Hai Or Doob K Par Jana Hai.......



                                                            By ...."Ana Dehlvi"

Saturday, March 9, 2013

शहीद

जब तुम शहीद हुए होगे,
उस पूरी रात तुम्हारी माँ ना सोयी होगी 


वोह गोली भी तुम्हारी छाती में
घुसने से पहले दिल तोड़कर रोई होगी 

Monday, February 11, 2013

मुहब्बत का जनाज़ा

कौन कहता है मुहब्बत का जनाज़ा निकला 
बात इतनी सी है, अपना भी पराया निकला 

उम्र-ए-रफ़्ता को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे 
बज़्म-ए-तनहाई में हर दम वह ज़माना निकला 

खत लिखे लाख मगर लौट के आए सारे 
जो किसीने न पढा ऐसा रिसाला निकला 

आदमी कौन यहाँ, देव किसे कहते हैं 
जिस को देखा वही पत्थर से तराशा निकला 

चाल हम ऐसी चले, मात हमारी तय थी 
जिस पर हमला किया वह सिर्फ 
प्यादा निकला 

थि खुमारी-ए-मुहब्बत तो लगा दिल गुलशन 
होश आया तो वही बाग ख़राबा निकला 

आज कल लोग, '
सफ़र ', भक्त हुए जाते हैं 
के सर-ए-कू-ए-ख़राबात शिवाला निकला




जनाज़ा मेरा उठ रहा था...

फिर भी तकलीफ थी उनको आने में...

ज़ालिम 
आई  भी तो पुछ रही थी ..

और कितनी देर लगेगी दफनाने में...

Wednesday, February 6, 2013

दानिश की दुनिया



डूबने की ज़िद

रंगे-दुनिया कितना गहरा हो गया
आदमी का रंग फीका हो गया

डूबने की ज़िद पे कश्ती आ गयी
बस यहीं मजबूर दरया हो गया

रात क्या होती है हमसे पूछिए
आप तो सोये, सवेरा हो गया

आज ख़ुद को बेचने निकले थे हम
आज ही बाज़ार मंदा हो गया

ग़म अँधेरे का नहीं दानिश मगर
वक़्त से पहले अँधेरा हो गया





कारीगर का पत्थर

पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है 
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है 

एक ज़रा सी कश्ती ने ललकारा है 
अब देखें क्या ढोंग समंदर करता है 

कान लगा कर मौसम की बातें सुनिए 
क़ुदरत का सब हाल उजागर करता है 

उसकी बातों में रस कैसे पैदा हो 
बात बहुत ही सोच समझ कर करता है 

जिसको देखो दानिश का दीवाना है 
क्या वो कोई जादू मंतर करता है

Sunday, February 3, 2013

आवारगी

अंदाज़ अपने देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कि कोई देखता न हो।

ये दिल, ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया, आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ, आवारगी।
कल शब मुझे बेशक्ल सी आवाज़ ने चौंका दिया
मैंने कहा तू कौन है उसने कहा आवारगी।
इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मेरे ग़म का सबब
सहरा की भीगी रेत पर मैंने लिखा आवारगी।
ये दर्द की तनहाइयाँ, ये दश्त का वीराँ सफ़र
हम लोग तो उकता गये अपनी सुना, आवारगी।
कल रात तनहा चाँद को देखा था मैंने ख़्वाब में
‘सफ़र’ मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी।


दश्त = रेगिस्तान
शब = रात
सबब = कारण

Sunday, January 27, 2013

अहिंसक है नपुंसक नहीं

अभी शहीदों की आत्माओं की शांति बाकी है,
अभी उजड़े सुहागों की क्रान्ति बाकी है,
अभी दुश्मन के लहू का पान बाकी है,
अभी तेरे नेस्तनाबूत होने की क्रान्ति बाकी है,
अभी लावारिस हुए मासूमों जवाब मांगेंगे,
अभी बूढ़े माँ-बाप खोया प्यार मांगेगे,
बहुत खेला क्रिकेट कहके अमन की आशा है,
अब खेलना है लहू से तेरे और नहीं दिलासा है,
सुन ले बेटा नापाक इसमें शक नहीं है,
अहिंसक तो हैं हम पर नपुंसक नहीं हैं…...!!!!!!

शहीद सैनिक की संवेदना

सीमाओं के प्रहरी गर, सीमाओं पर नहीं होते,
होली ना दीवाली, कोई तीज ना त्यौहार है।
दरवाजे तो क्या है, खिडकी भी खोलने से पहले,
सोचते कि बाहर की हवा की क्या रफ्तार है॥
उनके हौसले का भुगतान क्या करेगा कोई,
उनकी शहादत का कर्ज देश पे उधार है।
आप और हम इसलिये खुशहाल हैंकि,
सीमाओं पे सैनिक शहादत को तैयार है।
देखना मुमकिन भी नहीं, सोचना भी जिनको मुश्किल,
ऐसे हादसों को हमने सीने सेलगाया है।
हाथ को भी हाथ ना दिखाई दे वो अंधियारा,
ऐसे में हाथों ने हथियारों को उठाया है॥
माँ तेरी दुआ के दम से, आंचलकी हवा के दम से,
बर्फीली चट्टानों पे, बारुदको उगाया है।
परिंदा भी जहाँ पर, पर नहीं मार सके,
उस जगह जाके भी तिरंगा फहराया है।
क्या हुआ कुछ पल के लिये, सांसे मेरी रुक गई हैं,
माँ मेरी, मुझको भी इस बात का गुमान है।
जब तक सांसे रहीं, सीना दुश्मन के सम्मुख था,
ऐसे सीने पर मेरी सांसे कुर्बान हैं॥
शव मेरा देखो तो कायर न समझ लेना,
ये तो केवल उन दरिंदों की पहिचान है।
वैसे तो पूरा शरीर घाव से भरा हुआ पर,
पीठ पर मरने के बाद के निशान हैं॥
पीठ के निशान मेरे हौसले कोगाली देंगे,
वरना तो जीवन का उद्दार लेके जाता मैं।
चाहे इस लोक जाता, चाहे उस लोक जाता,
हर एक घाव को खुद्दार लेके जाता मैं॥
कहीं किसी भाव मिल जाती गर चंद सासें,
लहू गिरवी रख उधार लेके जाता मैं।
हौसला था किन्तु मेरी सांसेदगा दे गई थी,
वरना तिरंगा सीमा पार लेके जाता मैं॥
दोबारा जनम लुँगा सीमाओं पेलडने को,
तिरंगे को अपनी जबान देके आया हूँ।
धरती के बिन मांगे, मिट्टी में सितारे टाँगे,
वर्दी की मर्यादा की पहिचानदेके आया हूँ॥
आन बान शान सब लेकर के आया यहाँ,
तीर जैसे बेटे को कमान देकेआया हूँ।
जो भी था हासिल दिया था, डूबे को साहिल दिया था,
कारगिल को दिल दिया था, जान देके आया हूँ॥


                                          - श्री जगदीश सोलंकी

Thursday, January 24, 2013

जिंदगी है बड़ी बेवफा

है सब नसीब की बातें खता किसी की नहीं
ये जिंदगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं।

तमाम जख्म जो अंदर तो चीखते हैं मगर
हमारे जिस्म से बाहर सदा किसी की नहीं।

वो होंठ सी के मेरे पूछती है चुप क्यों हो
किताबे-ज़ुर्म में ऐसी सज़ा किसी की नहीं।

बड़े-बड़े को उड़ा ले गई है तख्त केसाथ
चराग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।

'सफ़र सबकी दुआएं मिली बहुत लेकिन
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।

मौत कितनी हसीं होती है


किसी शायर ने क्या खूब कहा है,

ज़िन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास ना बैठा 
आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे,

कोई तोहफा ना मिला आज तक मुझे 
और आज फुल ही फुल दिए जा रहे थे,

तरस गए हम किसी के एक हाथ के लिए 
और आज कंधे पे कंधे दिए जा रहे थे,

दो कदम साथ ना चलने को तैयार था कोई
और आज काफिला बन साथ चले जा रहे थे,

आज पता चला मुझे की मौत कितनी हसीन  होती है 
कम्बख्त हम तो यूँही जिए जा रहे थे।।

Tuesday, January 22, 2013

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।
है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।
अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।।

यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है।
जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है।।
प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था । 
पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।।

यह वीर चक्रवर्ती होगा , या त्यागी होगा सन्यासी।
जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।।
सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था ।
पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।।

बाँधे जाते इंसान,कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं।
काया ज़रूर बाँधी जाती,बाँधे न इरादे जाते हैं।।
वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौका पाकर निकल गया।
वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।।

जिस तरह धूर्त दुर्योधन से,बचकर यदुनन्दन आए थे।
जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के,पहरेदार छकाए थे ।।
बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा , तोते-सा बेदाग़ गया।
जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया।।

वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे,ये धूमिल अभी कहानी है।
हमने तो उसकी नयी कथा,आज़ाद फ़ौज से जानी है।।




                                                     - गोपालप्रसाद व्यास 




साया

"आस्मां वाले मेरे सर पे अपना साया रख ,
ज़मीं के सारे खुदाओं से दुश्मनी ले ली......!"

                                             (....अनाम)

Monday, January 21, 2013

कातिल या मसीहा

बनकर मेरा कातिल खुद ही जख्म दिखाने लगे

सितम करके हज़ारों खुद मरहम लगाने लगे 

हर एक आरज़ू पे जब जुल्म हुए दिल पर खामोश 

बारी बारी से गर्दिश-ऐ-दौरान हरदम दिखने लगे 

फर्जों की रवायत पर कुर्बान हुई जिंदगी जब 

नादानी से बुझते दिए की खुद लौ जलाने लगे 

बद्दुआ ना दो उस माझी को साहिल पे पहुंचकर

डूबा के कश्ती मझधार में जो उनको बचाने लगे 

दरखतों की शाखों पर खिले है कितने गुल लेकिन 

मेरे गुलशन में गुंचा-ऐ -दिल खुद मुरझाने लगे 

हजारों किये गुनाह मगर बनते रहे मसीहा सोना

उस पर ये एहसान उनका हमे कसूरवार ठहराने लगे 


कृष्ण तेरी राधा गजब करे


कृष्ण तेरी राधा गजब करे।
तेरे को या अधर नचावत तू मन मौद भरे।
कृष्ण रूप धर राधा आवे इसका भेद कोई नहीं पावे,
तू क्या जाने कृष्ण कन्हैया इससे जगत डरे।
कुंज गली में गली-गली में सबसे कहती हूं हीं भली मैं,
नट खट श्याम बतावें तोकूं समझो हरे हरे।
पाय़ल की झणकार सुणाकर कुछ तूं भी मन माहीं गुणाकर,
य़ा मनमानी करत लाडली ना निचली रहत घरे।
सब अपराध क्षमा कर मेरे शिवदीन कहत है हित में तेरे, 
मान मान मत मान श्याम श्यामा को क्यूं न बरे। 


                                                          रचनाकार: शिवदीन राम जोशी  

Sunday, January 20, 2013

डॉ कुमार विश्वास की कुछ रचनाएँ


"जो लड़-रहे हैं खून-पसीना बहा के रोज़,
उन के लिए ख़ुशी नहीं गम भी मज़े में हैं ,
सब का सुकून-चैन मुबारक हो आज से ,
दुनिया मज़े में हैं तों अब हम भी मज़े में हैं...."



मेरे हुजरे में नहीं और कहीं पर रख दो ,
आस्मां लाये हो ले आओ ज़मीं पर रख दो
अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे कातिल
आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमीं पर रख दो 



"हमें इकरार करना चाहिए था 

मुकम्मल प्यार करना चाहिए था 

ये सोचा था कि मर जायेंगे तुम बिन 

जो सोचा था तो मरना चाहिए था....!"



"जो धरती से अम्बर जोड़े ,उसका नाम जवानी है ,

जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम जवानी है , 

कतरा-कतरा सागर तक तो , जाती है हर उम्र मगर,

बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम जवानी है......!"




"गीता का ज्ञान सुनें ना सुनें, 

इस धरती का यशगान सुनें ,

हम सबद कीर्तन सुन ना सकें, 

भारत मां का गुणगान सुने ,

परवरदिगार मैं तेरे द्वार पर ले पुकार ये कहता हूं ,

चाहे अज़ान ना सुनें कान, 

पर जय जय हिन्दुस्तान सुनें…!



                                       - डॉ कुमार विश्वास 

Friday, January 18, 2013

कबीर के दोहे


कंकड़ पत्थर जोड़ के मस्जिद लियो बनाए।
ता चढ मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदा॥

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

बुरा जो देखने मैं चला, बुरा न मिला कोए !
जो मन खोजा आपणा, मुझसे बुरा न कोए!!

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए,
माली सींचे सौ घडा, रुत आये तो फल होए!